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Back पशुपालन आयुक्त, डॉ प्रवीण मलिक ने किया अविकानगर का दौरा



 डाॅ. प्रवीण मलिक, पशुपालन आयुक्त, भारत सरकार के  केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर में दो दिवसीय दौरे के दौरान आज दिनांक 17 सितम्बर, 2022 को संस्थान में 7 राज्यों के एन्टरप्रोन्यर 26 किसान जो भेड़, बकरी एवं खरगोश पालन पर प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं एव साथ में अरावली वेटेनरी काॅलेज, सीकर के इन्टरशीप हेतु संस्थान में आये 23 पशु चिकित्सक छात्र-छात्राओं को सम्बोधित करते हुये भारत सरकार द्वारा पशुपालकों हेतु चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के बारे में विस्तृत से समझाया साथ ही पशुपालन व्यवसाय को देश के विकास में महत्वपूर्ण बताते हुए भारत सरकार द्वारा किये जा रहे नये सुधारों पर विस्तृत चर्चा की एवं भारत सरकार द्वारा पशुपालन व्यवसाय की महत्वतता को समझते हुए पशुपालकों को दी जा रही योजनाओं की सब्सिडी के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा कि पशुपालक, पशुपालन व्यवसाय को बिचैलिये की भूमिको को स्वयं निभाते हुए मूल्य संवर्द्धन आधारित उत्पाद बनाये एवं आज के आर्थिक युग में पशुपालन व्यवसाय को जैविक तरीके से करके ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमायें। आगे उन्होंने कहा कि सरकार वर्तमान में पशुपालन व्यवसाय से आत्मनिर्भर भारत के विकास में अधिक से अधिक योगदान दे रही है। वर्तमान में पशुपालन व्यवसाय के किसान क्रेडिट कार्ड भी बनाये जा रहें है जिनका भी पशुपालक ज्यादा से ज्यादा लाभ लेकर आजीविका में वृद्धि करें। डाॅ. प्रवीण मलिक ने वर्तमान में लम्पी स्किन रोग से बचाव, उपचार एवं सावधानी रखते हुए पशुओं को बचाने की अपील की एवं कहा कि सरकार इस रोग से बचाव हेतु आवश्यक मदद करने का प्रयास कर रही है। सम्बोधन के दौरान उपस्थित प्रशिक्षण एन्टरप्रोन्यर एवं वेटेनरी विद्यार्थियों के साथ बातचीत करके उनके सभी प्रश्नों एवं शंकाओं का समाधान किया। कार्यक्रम में डाॅ. अरूण कुमार तोमर निदेशक ने प्रवीण मलिक का धन्यवाद देते हुए बताया कि आपके अनुभवों से श्रीमान सभी उपस्थितगण लाभान्वित होंगे। कार्यक्रम में डाॅ. विनीत भसीन, पूर्व प्रधान वैज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली ने भी भेड़-बकरी पालन पर विस्तार से चर्चा कर सहकारी संस्थाओं के माध्यम से उत्पादों का बाजारीकरण स्थानीय स्तर पर करने की सलाह दी। सामुदायिक वधशाला की स्थापना कर स्थानीय बाजार की आवश्यकता के अनुसार कम पशु का वध कर लाभ उठाने की बात कही। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. लीलाराम गुर्जर, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने किया।



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